हमें है रास तुम्हारा नगर कुछ ऐसा है
खु़शी के साथ कटेगा सफ़र कुछ ऐसा है
कि जैसे-जैसे बड़ी उम्र ये हुआ बूढ़ा
के अहदे-तिफ़ली का दिल में शजर कुछ ऐसा है
कोई भी आए न आए ये राह देखेगा
हमारा देख दिले-मुन्तजि़र कुछ ऐसा है
कोई न दर खुले आवाज़ पर न खिड़की ही
किसी के कूचे में अपना गुज़र कुछ ऐसा है
ख़ुद अपने पांव की आहट से चौंक जाता हूं
बिछड़ने का किसी अपने से डर कुछ ऐसा है
हमें भी उसकी नहीं है कोई ख़बर राजन
हमारे अपने भी हैं कुछ एसा है
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