लिबासे-होशो-खि़रद तार-तार आखि़र क्यूं
के दो दिनों में हि उतरा ख़ुमार आख़िर क्यूं
मैं तुझको भूल गया हूं यकी़न था मुझको
मगर ख़याल तेरा बार-बार आखि़र क्यूं
न कोई वादा न चिट्ठी न कोई संदेशा
मैं उसका कर रहा हूं इंतजा़र आखि़र क्यूं
तमाम उम्र उससे जीत कर भी हार गया
मगर ये उल्टा छपा इश्तेहार आखि़र क्यूं
मैं कल ही फूल बिछाकर गया था रास्ते में
यह किसने राह में फैलाए ख़ार आख़िर क्यूं
मैं अपनी आंख के आंसू छुपा के रखता हूं
कोई ना पूछ ले हूं अश्कबार बाद आखि़र क्यूं
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