जो छोड़ के आया हूं वो सब भूल गया हूं
मत याद दिलाओ मुझे जब भूल गया हूं
खु़शियों को बता दो मेरे दरवाजे़ खुले हैं
माज़ी के सितम वाले सबब भूल गया हूं
कहते हैं कि मैं चीख़ता फिरता हूं मुसलसल
क्या दरसे-मुहब्बत का अदब भूल गया हूं
यह गर्दिशे-दौरा मुझे सब कुछ ना भुला दे
वह थी कभी इस दिल की तलब भूल गया हूं
पीने का कहां शौक़ मगर इसका हूं ममनून
इस शग़्ल से उसको भी मैं अब भूल गया हूं
जिस रात मेरी बाहों में ख़ुद चांद समाया
अफ़सोस है राजन मैं वह शब भूल गया हूं
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