ख़्वाब आंखों का सुहाना छोड़कर
रो रहा है मुस्कुराना छोड़ कर
बाक़ी सारी नक़्ल-ओ-हरकत है ग़लत
छत पे उसका आना-जाना छोड़ कर
कहने वाला था विरह की दास्तां
चुप हुआ है वो सुनाना छोड़कर
देर होती जा रही है घर चलो
झूंठ का रंगी ज़माना छोड़ कर
शह्र की बदली फि़जा़ को देखकर
चल दिये वो आबोदाना छोड़कर
अब तो राजन ओढ़ लो खा़मोशियां
सब कहो बस हक़ जताना छोड़ कर

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